वख्त पर मैंने मुकदमा चलाया
हँसता हुआ वह कठेरे में आया
आहिस्ता से हाथ थामा मेरा
तक़दीर को गवाह बनाया
ज़ुबानी दी भरी कचेरी में
बचपन में मुझे गले लगाया
जब आयी जवानी भरपूर
अपनी मस्ती में मुझे बिताया
बुढ़ापा अभी बाकी है दोस्त
ऐसा कहकर मुझे सताया
हमने भी हँसते हुए कहा
तकदीर को हमने गले लगाया
फैसला आया मेरे हक्क में
वख्त को करीब बुलाया
ऐसे हसीन हुक्मनामे को
उसने भी मंज़ूर बताया !!!
-आसिम बक्षी
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