तुम एक बार आज़मा लो मुझे,
हर एक दिक्कत सुना दो मुझे ।
शायद मरहम भी हो मेरे पास,
सारे ज़ख्म अब दिखा दो मुझे ।
महसूस किया है जिन ग़मों को,
अपनी ज़ुबाँ से समजा दो मुझे ।
अश्क़ भी मैं, अश्क़ की वजह भी,
आंखों से तुम छलका दो मुझे ।
‘अख़्तर’ बिना नहीं रह पाओगे,
कैसे कह दुँ की भुला दो मुझे ।
-Dr. Akhtar Khatri
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