कभी कभी बेलफ़्ज़ होना भी जरुरी है,
कभी कभी ख़ामोशी को सुनना भी ज़रूरी है।
ऐसा तो नहीं हर बार लड़ाई दिल और दिमाग की ही हो,
कभी कभी ख़ुदसे लड़ना भी ज़रूरी है।
ऐसा तो नहीं सपने की ज़िन्दगी सच ही हो,
कभी कभी आँखे खोल लेना भी ज़रूरी है।
ऐसा तो नहीं के शीशे हमेशा गलती से ही टूटे,
कभी कभी अपने आप ही आईने तोड़ लेना ज़रूरी है।
कभी कभी उल्ज़नो में ही ज़िन्दगी सुलझ जाती है,
कभी कभी उल्ज़नो में ही खुदको सुलझाना ज़रूरी है।
लड़ाई दिलसे हो, दिमाग से हो, खुद से हो या हकीकत से,
कभी कभी बिना सवाल किये उससे हार जाना भी ज़रूरी है।
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Categories: Poems / कविताए