खुली आंख से सपने सज़ा लो,
इन ख्यालो में बसा क्या है ।
अथक परिश्रम तुम कर लो,
इन चापलूसी में रखा क्या है ।
भटको मत, लक्ष्य का पीछा करो,
मंजिल से पूछो तेरा पता क्या है ।
राहें बनती – बिगड़ती जायेगी,
पगडंडियों से घबराना क्या है ।
उड़ते रहो उन्मुक्त परिंदे की तरह,
पंछी से पूछो इतराना क्या हैं ।
हर तरफ से रुख मोड़ लो अपनी ओर,
हवाओ से पूछो तेरी दिशा क्या है ।
पहुंच जाओ उन शिखर तक,
अब चट्टानों से टकराना क्या है ।
थको मत, रुको मत, हिम्मत न हारो,
पूछो इन जीत से तेरी रज़ा क्या है ।
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